Category Archives: Dheere dheere jab aangan me

धीरे-धीरे जब आँगन में

धीरे-धीरे जब आँगन मेंयहाँ फैलता सूनापन।गीले-गीले नयनों सेहृदय नापता अपनापन।। अपनापन रातों का सच्चादिन का है दर्पण कच्चासच में दंभ यथा भरने सेमेरा खाली बर्तन अच्छाअच्छाई की बनी चाशनीमें पिघलाता मैलापन।गीले-गीले नयनों सेहृदय नापता अपनापन।। सागर की लहरों में भीगिरती … Continue reading

Posted in जीवन, Dheere dheere jab aangan me, Hindi kavita | Tagged , , , , | Leave a comment