Author Archives: Ashish kavita

About Ashish kavita

प्रकाशित पुस्तक - मेरी कविता मेरे भाव https://www.amazon.in/dp/B07V7BSHL9?ref=myi_title_dp I am Ashish Mishra living in London from 10 years. Earned education from Delhi. At present working in Computer Software arena. Since childhood I am attached to Hindi poetry. I love hindi poem. My favourite poets are Ramdhari Singh Dinkar, Harivansh Rai Bachan, Maithili Sharan Gupt … Email address: ashish24mishra@gmail.com https://www.facebook.com/profile.php?id=100000578775200 Edit

कानाफूसी

दीवारें सब कुछ सुनती हैं कान बहुत नीचा रखती हैं फिर जैसा तुमको सुनना है निश्चित वैसा कह देती हैं दीवारों के कान से सटकर   उनका कान लगा होता है   सुनने वाला वह सुनता है    जैसा चित्र  बना  होता  है   @ashishpoem Ashish Mishra

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धीरे-धीरे जब आँगन में

धीरे-धीरे जब आँगन मेंयहाँ फैलता सूनापन।गीले-गीले नयनों सेहृदय नापता अपनापन।। अपनापन रातों का सच्चादिन का है दर्पण कच्चासच में दंभ यथा भरने सेमेरा खाली बर्तन अच्छाअच्छाई की बनी चाशनीमें पिघलाता मैलापन।गीले-गीले नयनों सेहृदय नापता अपनापन।। सागर की लहरों में भीगिरती … Continue reading

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धूप

धूप में खड़ा-खड़ानाप रहा हूँ अपनी ही लम्बी होती परछाई को,कभी छोटी तो कभी बड़ी होती हैकभी यहीं तो कभी दूर खड़ी होती है।मैं बोलता हूँ वो बोलती नहींलेकिन वो सजीव हैमैं हिलाता हूँ तो हिलती हैमैं चुप तो वो … Continue reading

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The Kashmir Files

“The Kashmir Files” एक ऐसी फ़िल्म है जो आज़ाद भारत में हुई सबसे बड़ी त्रासदी, अत्याचार और नरसंहार को दर्शाती है। यह 1990 के आसपास कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों पर मुस्लिम कम्यूनिटी के द्वारा किए गए आतंकवाद को दिखाती … Continue reading

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आने को तैयार जनवरी

देख दिसम्बर बूढ़ा होकर गिनता अपनी रातें हैआने को तैयार जनवरी चार दिनों की बातें हैकैलेंडर ने चुप्पी साधी अंतिम साल महीने मेंनयी रोशिनी लेकर बैठी जनवरी अपने सीने में उस कोने में साल है बैठा ताके अपनी राहें हैदेख … Continue reading

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बुझे हुए दीपों से पूछो

बुझे हुए दीपों से पूछो कितने रोशनदान बनाए अंधेरे को दूर भगा कर घर में कितने राम सजाए लौ ने कैसे ठुमक-ठुमक कर देखा ख़ुद को जला रही थी आधी बाती बची हुई तिरछी होकर बता रही थी एक बूँद … Continue reading

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रावण दहन

आज फिर से रावण जला दिया स्वयं को दोबारा नया बना लिया। अगले बरस तक कुछ और जोड़ लेंगे पुराने बगीचे से कुछ नवीन तोड़ लेंगे स्वयं को तराशना कठिन ही होगा आसान बनाने को दशानन बटोर लेंगे। कम से … Continue reading

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हिंदी दिवस

हिंदी को अपनाइए, ना समझें इसको बोझऐसा एक निवेदन है, आग्रह और अनुरोध

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पेड़-पौधे

गमले या फिर ज़मीं कहीं पौधों की है जगह वहींकबतक देर लगाओगे और सोचना सही नहीं

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