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धूप

धूप में खड़ा-खड़ानाप रहा हूँ अपनी ही लम्बी होती परछाई को,कभी छोटी तो कभी बड़ी होती हैकभी यहीं तो कभी दूर खड़ी होती है।मैं बोलता हूँ वो बोलती नहींलेकिन वो सजीव हैमैं हिलाता हूँ तो हिलती हैमैं चुप तो वो … Continue reading

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