“The Kashmir Files” एक ऐसी फ़िल्म है जो आज़ाद भारत में हुई सबसे बड़ी त्रासदी, अत्याचार और नरसंहार को दर्शाती है। यह 1990 के आसपास कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों पर मुस्लिम कम्यूनिटी के द्वारा किए गए आतंकवाद को दिखाती है। ये बताती है कि कैसे वहाँ के अल्पसंख्यक हिंदु परिवारों को दो विकल्प दिए गए – या तो इस्लाम अपनाइए या कश्मीर छोड़िए।
निर्देशक – विवेक अग्निहोत्री
कलाकार – अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी।

निर्देशक विवेक अग्निहोत्री के साहस और उनकी निष्ठा को सलाम। आज से पहले कितनी ही फ़िल्में कश्मीर के परिदृश्य में आतंकवाद पर बनी लेकिन ये उनसे अलग है – फ़िल्म मुद्दे से कहीं नहीं भटकती – शुरू से अंत तक यही दर्शाती है, समझाती है कि कैसे मुस्लिम कम्यूनिटी के सामूहिक आतंकवाद ने अपने मुहल्ले-पड़ोस में रह रहे हिंदू परिवारों की हत्या की, बहनो की अस्मिता को नोचा। अंततोगत्वा हज़ारों-लाखों हिंदू पण्डितों को कश्मीर की वादियों से पलायन होना पड़ा जहाँ वे दशकों दशक भरी सदियों से रह रहे थे।
1990 का दशक कोई बहुत पुराना नहीं लेकिन इन घटनाओं की राष्ट्रीय स्तर पर कोई मीडिया coverage नहीं हुई।
मज़े की बात है कि इसी दौरान हुई अन्य घटनाओं को मीडिया ने ख़ूब परोसा या राजनीतिक दलों ने ख़ूब पाला जैसे आरक्षण, बाबरी-मस्जिद लेकिन आज़ाद भारत के इतने बड़े नरसंहार और पलायन को नज़रंदाज़ किया।
वहाँ की राज्य सरकार भारत विरोधी हमेशा से रही है सो उनकी आतंकवादियों को प्रश्रय देना विदित रहा। दुःखद तो यह है कि उस समय की नपुंसक भारत सरकार ने भी जानबुझ कर अपने व्यक्तिगत हितों के लिए पूरे घटनाक्रम को अनदेखा किया।
फ़िल्म का स्क्रीन्प्ले बहुत सी जगह flashback में चलता है। फ़िल्म की कहानी के हिसाब से सारे कलाकार सलीके से चुने गए हैं। मुख्य कहानी पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) पर केंद्रित है। अनुपम खेर ने उत्कृष्ट अभिनय दिखाया और पुस्कर नाथ पंडित के परिवार की भयानक स्थिति को पर्दे पर जीवंत कर दिया। मिथुन चक्रवर्ती ने एक ब्युरोक्रट का किरदार निभाया है। पुष्कर नाथ के पोते कृष्णा – जो दर्शन कुमार ने निभाया है। दर्शन कुमार की performance शानदार है। हालाँकि फ़िल्म के अंत में उनकी स्पीच थोड़ी कमतर लगती है। शारदा पंडित का रोल भाषा सम्बलि ने बेहतरीन निभाया है।
स्क्रीन writers ने जगह-जगह कश्मीर का मूल परिवेश और भाषा का भी सही-सही ध्यान रखा है।
फ़िल्म में दो मुख्य high points हैं जैसे पुष्कर नाथ के बेटे की हत्या और climax में हिंदू परिवारों की सार्वजनिक हत्या जिसमें बारह साल का बच्चा शिवा भी शामिल है।
कुल मिलाकर यह फ़िल्म लीक से हटकर है और लोगों को पसंद भी आ रही है। इस तरह की फ़िल्म या यूँ कहें की सही डॉक्युमेंटरी की लोगों को लम्बे समय से तलाश थी। फ़िल्म कहीं भी तथ्यों से परे नहीं लगी।
आशीष मिश्रा, ब्रिटेन