Monthly Archives: August 2017

ताज़महल

समूचे खम्भे थे, पूरी दीवारें नक्कासियों से बहती धारें ऊपर सफ़ेदी सज़ि पर अंदर अँधेरा ना जाने कैसा मक़बरा दरवाज़े थोड़े थे पर आने वाले ख़ूब सारे सारे लोग तत्पर थे देखने को ख़ूब नज़ारे आज शोर ही शोर था … Continue reading

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